अस्वीकृत - Owen Jones

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1 अस्वीकृत

एक पिशाच परिवार की हास्यपूर्ण कहानी

लेखक

ओवेन जोंस

अनुवादक: मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ाँ

कॉपीराइट ओवेन जोंस 15 मार्च, 2021

कॉपीराइट डिजाइन और पेटेंट अधिनियम 1988 की धारा 77 और 78 के अनुसार इस कार्य के अधिकार इसके लेखक के रूप में पहचाने जाने वाले ओवेन जोन्स के पास हैं। लेखक के नैतिक अधिकार सुरक्षित हैं।

कथा साहित्य के इस कार्य में, पात्र और घटनाएँ या तो लेखक की कल्पना की उपज हैं या उनका उपयोग पूरी तरह से काल्पनिक रूप से किया गया है। कुछ स्थान मौजूद हो सकते हैं, लेकिन घटनाएँ काल्पनिक हैं।

प्रकाशक

मेगन प्रकाशन सेवाएँ

https://meganthemisconception

2 समर्पण

यह पुस्तक मेरे दोस्तों लॉर्ड डेविड प्रोसेर और मरे ब्रोमली को समर्पित है, जिन्होंने मेरी और मेरे थाई परिवार की 2013 में इतनी मदद की है जो वे कभी महसूस भी नहीं करेंगे।

इस पुस्तक का अनुवाद योरूबा में अनुवाद करने तथा पाठ के संबंध में सुझाव देने के लिए एस॰ जे॰ अगबूला का भी धन्यवाद।

कर्म सभी का उधार हर तरह से चुकाएगा।

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1 श्री ली की अवस्था

श्री ली या बूढ़ा ली, जिस नाम से उसे स्थानीय लोग जानते थे, हफ्तों से अजीब सा महसूस कर रहा था, और चूंकि स्थानीय समाज बहुत छोटा और अलग-थलग था, क्षेत्र का हर व्यक्ति उससे वाकिफ था। वह एक स्थानीय चिकित्सक के पास इसका समाधान खोजने गया, एक पुराने ढंग की चिकित्सक, कोई आधुनिक मेडिकल डॉक्टर नहीं, और उसने उसको बताया कि उसके शरीर का तापमान असंतुलित हो गया था, क्योंकि कोई चीज़ उसके रक्त को प्रभावित कर रही थी।

वह औरत, एक तांत्रिक, श्री ली की बुआ, वास्तव में अभी भी इसके कारण के बारे में बिलकुल विश्वास से कुछ नहीं कह सकती थी। लेकिन उसने वादा किया कि वह इसके बारे में चौबीस घंटे में पता लगा लेगी, बशर्ते कि उसको कुछ नमूने उपलब्ध कराये जाएँ और जब वह बुलाए तब वह वापस आए। उसने श्री ली को काई का एक गुच्छा और एक पत्थर दिया।

वह जानता था कि क्या करना है, क्योंकि वह इसे पहले भी कर चुका था, तो उसने काई पर पेशाब किया और पत्थर पर गहरी चोट करने के बाद उस पर थूक दिया। उसने श्रद्धा भाव से वे उसे वापस कर दिये, और इस सावधानी के साथ कि कहीं वह नंगे हाथों से छू कर उन्हें दूषित न कर दे, उस ने उन्हें अलग अलग केले की पत्तियों में लपेट दिया, ताकि उनकी नमी, जितनी देर तक हो सके, बनी रहे।

“उन्हें सड़ने और सूखने के लिए एक दिन का समय दो, फिर मैं उनका बारीकी से निरीक्षण करूंगी और पता लगाऊँगी कि तुम्हारे साथ समस्या क्या है।”

“धन्यवाद बुआ डा, मेरा मतलब है तांत्रिक डा। मैं आपके बुलावे का इंतज़ार करूंगा और जैसे ही आप मुझे बुलाएंगी, मैं हाजिर हो जाऊंगा।”

“तुम यहीं इंतज़ार करो, बेटे, अभी मैं ने बात खत्म नहीं की है।”

डा अपने पिछवाड़े की ओर गई और अलमारी से एक मिट्टी का मर्तबान उठाया। उसने उसे खोला, उसमें से दो घूंट भरे और आखिरी वाला बूढ़े ली पर थूक दिया। जब डा अपने देवताओं से प्रार्थना कर रही थी, श्री ली सोच रहे थे कि वह “पवित्रीकरण” के बारे में भूल गई है – उसे खुद पर किसी के थूकने से नफरत थी, खास कर के सड़े हुए दांतों वाली बूढ़ी औरतों के।

“जब तक हम तुम्हारा मामला सुलझा नहीं लेते, यह शराब की फुहार और प्रार्थना तुम्हें काबू में रखेगी।” उसने उसे भरोसा दिलाया।

तांत्रिक डा अपने चिकित्सकीय मंदिर की कच्ची ज़मीन से अपने पद्मासन से उठ खड़ी हुई, उसने अपनी बांह अपने भतीजे के गले में डाली, और सिगरेट को घुमाते हुए उसे साथ ले कर बाहर आ गई।

बाहर आ कर उसने उसे सुलगाया, एक गहरा कश लिया और धुएँ को अपने फेफड़ों में भरता हुआ महसूस किया।

“तुम्हारी वह बीवी और प्यारे बच्चे कैसे हैं?”

“ओह, वे ठीक हैं, बुआ डा, लेकिन मेरे स्वास्थ्य को लेकर थोड़े चिंतित हैं। मैं कुछ दिन से थोड़ा बीमार महसूस कर रहा हूँ और आप तो जानती ही हैं, मैं अपने पूरे जीवन में कभी बीमार नहीं पड़ा हूँ।”

“नहीं, हम ली लोग बहुत मजबूत होते हैं। तुम्हारे पिता, मेरे प्यारे भाई, भी अगर फ्लू से मर न गए होते, तो अब तक अच्छे-भले होते। वह भैंसे की तरह मजबूत थे। तुम चाहे जितनी कोशिश करो, लेकिन उसे कभी गोली नहीं लगी। मुझे लगता है, उसी चीज़ ने तुम्हें पकड़ लिया है, वही यांकी गोली।”

“श्री ली इससे पहले भी इससे हजारों बार दो-चार हुआ था, लेकिन वह बहस में जीत नहीं सकता था, तो उसने सिर्फ हाँ में सिर हिलाया, अपनी बुआ को एक पचास बहत का नोट दिया और अपने खेत में बने घर लौट आया, जो गाँव के बाहर वहाँ से कुछ सौ गज की दूरी पर ही था।”

वह पहले ही बेहतर महसूस कर रहा था, तो सब के सामने यह साबित करने के लिए वह जोशीली चाल से चला।

बूढ़ा ली अपनी बूढ़ी बुआ डा पर पूरा विश्वास करता था, जैसा कि उसके समाज में सभी लोग करते थे, यह एक छोटा सा गाँव था, जिसमें कुछ पाँच सौ मकान और गाँव के बाहर कुछ दर्जन खेत थे। जब वह छोटा बच्चा था, तभी उसकी बुआ डा ने गाँव के ओझा की जगह संभाल ली थी, और ऐसे कुछ दर्जन लोग ही रहे होंगे, जिन्हें उसके पहले वाले ओझा की याद होगी। उनके बीच उनका अपना कोई विश्वविद्यालय का डिग्री याफ़्ता डॉक्टर नहीं था।

ऐसा नहीं था कि किसी फिजीशियन तक गाँव वालों की पहुँच नहीं थी, लेकिन वे बहुत कम और बहुत दूर थे – सबसे पास का स्थायी डॉक्टर शहर में था,जो पिचहत्तर किलोमीटर दूर था और थाईलैंड के उत्तरपूर्वी कोने के शिखर पर मौजूद उस पहाड़ पर, जहां वे रहते थे, कोई बसें, टैक्सियाँ या ट्रेनें नहीं चलती थीं। इसके अलावा, डॉक्टर महंगे थे और महंगी दवाइयाँ लिखते थे, जिससे, हर किसी का मानना था कि वे मोटी दलाली कमाते थे। कुछ गावों के आगे जा कर भी एक दवाखाना था, लेकिन यहाँ केवल एक पूरे समय की नर्स और एक थोड़े समय काम करने वाला डॉक्टर था, जो वहाँ पखवाड़े में एक बार आता था।

श्री ली के जैसे गाँव वाले सोचते थे कि वे शायद अमीर शहरी लोगों के लिए अच्छे थे, लेकिन उनकी पसंद की कोई ज़्यादा अहमियत नहीं थी। कैसे एक किसान सारा दिन के लिए खेत के काम से छुट्टी ले कर और किसी को मय उसकी कार के किराये पर ले कर डॉक्टर से मिलने जा सकता था? और वह भी तब, जब किसी के पास कार होती, हालांकि वहाँ 10 किलोमीटर के दायरे में कुछ पुराने ट्रैक्टर ज़रूर थे।

नहीं, उसने सोचा, उसकी बुआ किसी के भी लिए काफी है और वही उसके लिए भी काफी है। और इसके अलावा, जब तक समय नहीं आ जाता था, वे किसी को मरने नहीं देती थीं और निश्चित रूप से उन्होंने किसी का खून नहीं किया था, कोई भी इस बात पर क़सम खा सकता था।

कोई भी।

श्री ली को अपनी बुआ पर बहुत गर्व था, और कुछ भी हो, वहाँ आसपास मीलों तक उनका कोई विकल्प भी नहीं था, और निश्चित रूप से उनके जैसा अनुभवी और कोई था भी नहीं – उनके जैसा….? हाँ तो, कोई भी नहीं जानता था की वास्तव में उनकी उम्र कितनी है, वह खुद भी नहीं, लेकिन शायद 90 वर्ष तक होगी।

श्री ली यही सब सोचते हुए घर के सामने के आँगन तक पहुँच गए थे। वह इस मामले पर अपनी बीवी से बात करना चाहते थे, क्योंकि हालांकि वह बाहरी दुनिया में अपने परिवार के बॉस के रूप में दिखाई देता था, जैसा कि हर दूसरे परिवार के साथ होता है, लेकिन वह केवल दिखावा था, क्योंकि वास्तव में, हर निर्णय पूरे परिवार द्वारा मिल कर या कम से कम सभी वयस्कों द्वारा लिया जाता था।

यह काफी महत्वपूर्ण दिन था, क्योंकि श्री ली पहले कभी ऐसे संकट में नहीं फंसे थे और उनके दो बच्चे, जो अब बच्चे बिलकुल नहीं रहे थे, उनको भी अपनी बात रखने की अनुमति मिलनी चाहिए थी। इतिहास बनने ही वाला था, और श्री ली को इसकी खूब खबर थी।

“मॅड” उसके पुकारा, उसका अपनी बीवी को दिया हुआ प्यार का नाम, तब से जब उनका पहला बच्चा ‘माँ’ कहना भी नहीं जानता था। “मॅड, क्या तुम वहाँ हो?”

“हाँ, मैं यहाँ पिछवाड़े में हूँ।”

ली ने कुछ पल उसके टॉइलेट से बाहर आने का इंतज़ार किया लेकिन घर के अंदर गर्मी और उमस थी, तो वह वापस बाहर के आँगन में आ गया और अपनी घास की छत वाली बड़ी सी पारिवारिक मेज़ पर बैठ गया, जहां पूरा परिवार खाना खाता था, और फुर्सत के समय बैठा करता था।

श्रीमती ली का असल नाम वान था, हालांकि उसका पति प्यार से उसे मॅड बुलाता था, जब से उसके बड़े बेटे ने उसे ऐसे बुलाया था, और यह नाम श्री ली की ज़ुबान पर चढ़ गया था, लेकिन उनके किसी बच्चे की ज़ुबान पर नहीं। वह बान नोई गाँव से आई थी, जहां से ली खुद भी था, लेकिन उसका परिवार और कहीं से नहीं था, जबकि मिस्टर ली का परिवार दो पीढ़ियों पहले चीन से आया था, हालांकि वह घरेलू शहर भी यहाँ से अधिक दूर नहीं था।

वह बिलकुल क्षेत्र की औरतों की जैसी थी। अपने दिनों में वह बहुत प्यारी लड़की थी, लेकिन उन दिनों लड़कियों को अधिक अवसर नहीं दिये जाते थे और न वे महत्वाकांक्षी होने की हिम्मत कर सकती थीं, न यह चीज़ बीस सालों बाद भी उसकी बेटी के बारे में अधिक बदली थी। श्रीमती ली ने स्कूल छोड़ने पर एक पति की तलाश की थी, इसलिए जब हेंग ली ने उसका हाथ मांगा था और उसके माता-पिता को अपने बैंक में मौजूद मुआवजे के पैसे दिखाए थे, तो उसने सोचा था कि वह किसी अन्य स्थानीय लड़के की तरह ही एक अच्छा रिश्ता है, जिनके उसे मिलने की संभावना थी। न तो उसे अपने दायरे को बढ़ाने के लिए अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से भाग कर किसी बड़े शहर जाने की इच्छा थी।

वह भी अपने तरीके से हेंग ली से प्यार करने लगी थी, हालाँकि उसके छोटे से प्रेम जीवन में से गर्माहट काफी पहले ही विदा हो चुकी थी, और वह अपनी पारिवारिक कंपनी में पत्नी की तुलना में अब एक बिज़नेस पार्टनर के रूप में अधिक थी, जो उनके आपसी जीवन और उनके दो बच्चों के लिए समर्पित थी।

वान का कभी कोई प्रेमी नहीं था, हालांकि उसे अपने विवाह के पहले और बाद में प्रस्ताव तो काफी मिले। उस समय, वह नाराज हो गई थी, लेकिन अब जब वह अपने उन क्षणों को देखती थी, तो एक कोमलता अनुभव करती थी। ली उसका पहला और एकमात्र, और अब निश्चित रूप से उसका आखिरी प्यार था, लेकिन उसे इस बात का कोई पछतावा नहीं था।

अब उसका एकमात्र सपना अपने पोते-पोतियों को देखना और उनकी देखभाल करना था, जिन्हें उसके बच्चे निश्चित रूप से सही समय पर पैदा करते, हालांकि वह उन्हें नहीं चाहती थी, खासकर उसकी बेटी, जैसे उसने जल्दबाज़ी में शादी की थी। वह जानती थी कि उसके बच्चों को यदि वे सक्षम हुए तो बच्चे होने उतने ही निश्चित थे, जितना सूरज का पूर्व में निकलना। तो उनके बच्चे भी सुनिश्चित होंगे, क्योंकि वे सक्षम थे, क्योंकि यह उनके बुढ़ापे में अपने लिए कुछ वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने और परिवार की स्थिति विकसित करने का एकमात्र तरीका था।

श्रीमती ली परिवार, हैसियत और प्रतिष्ठा की परवाह करती थी, लेकिन अब जो उसके पास था उसके अलावा उसे किसी और भौतिक चीज़ की कोई कामना नहीं थी। वह उन चीजों के बिना रहने की इतनी आदी हो चुकी थी की अब वे उसके लिए कोई मायने नहीं रखती थीं।

कम से कम कहने को उसके पास पहले से ही एक मोबाइल फोन और एक टेलिविजन था, लेकिन सिग्नल खराब आता था, और सिवा इस बात की प्रतीक्षा करने के, कि सरकार आसपास के स्थानीय ट्रांसमीटरों को बदले, जो अभी नहीं तो किसी न किसी दिन तो होना ही था, इस बारे में वह कुछ भी नहीं कर सकती थी। उसे कार नहीं चाहिए थी, क्योंकि वह कहीं जाना ही नहीं चाहती थी और इसके अलावा सड़कें भी कोई बहुत अच्छी नहीं थीं।

हालांकि बात सिर्फ इतनी सी ही नहीं थी, उसकी उम्र और उस जगह के लोग बरसों से कार को अपनी पहुँच से इतने बाहर की चीज़ समझते थे कि उन्होंने दहाईयों पहले उसकी कामना करना छोड़ दिया था। दूसरे शब्दों में, वह साइकिल और पुरानी मोटरसाइकिल से संतुष्ट थी, जिन्हें मिला कर उसके परिवार का परिवहन बेड़ा बनता था।

न तो श्रीमती ली को सोने और बढ़िया कपड़ों की चाहत रही थी, क्योंकि एक किसान की आमदनी में दो बच्चों की परवरिश की हक़ीक़त ने कई सालों पहले ही उसके दिल से यह चाहत निकाल दी थी। इस सब के बावजूद श्रीमती ली एक खुश औरत थी, जो अपने परिवार के साथ रहती थी, और जो भूल चुकी थी कि वह कौन है और कहाँ से है, जब तक कि बुद्ध उसे किसी दिन दोबारा घर आने का बुलावा न भेज दें।

श्री ली अपनी बीवी को अपनी ओर आते देख रहा था, वह अपने सरोंग के नीचे किसी चीज़ को व्यवस्थित करने का प्रयास कर रही थी, लेकिन बाहर से – कुछ था, जो सही बैठ नहीं रहा था, उसने मान लिया था, लेकिन कभी पूछा नहीं। वह मेज़ के किनारे पर बैठ गई और अपने पैरों को ऐसे झुलाने लगी जैसे कोई जलपरी डैनिश चट्टान पर बैठी हो।

“अच्छा, उस बूढ़ी डायन ने क्या कहा?”

“ओह, छोड़ो भी मॅड, वह इतनी बुरी भी नहीं है। अच्छा, तुम और वह इस पर कभी एक नहीं होते, लेकिन कभी-कभी यह ऐसे ही चलता है, नहीं? उसने कभी तुम्हारे बारे में कोई बुरी बात नहीं कही, क्यों? केवल तीस मिनट पहले वह तुम्हारे स्वास्थ्य के बारे में पूछ रही थी….और बच्चों के।”

“तुम भी कभी कभी कैसी मूर्खता की बातें करते हो, हेंग। जब उसके आसपास लोग उसे सुन रहे होते हैं तो वह मुझ से मेरे बारे में अच्छे से बात करती है, लेकिन जब कभी भी हम अकेले होते हैं, वह मुझसे कचरे के जैसा बर्ताव करती है, और हमेशा करती रही है। वह मुझसे नफरत करती है, लेकिन वह इतनी कुटिल है कि वह तुम्हें यह पता नहीं चलने देगी, क्योंकि वह जानती है कि तुम मेरा पक्ष लोगे, उसका नहीं। तुम मर्द लोग सोचते हो कि दुनिया में तुम्हीं सबसे बुद्धिमान हो, लेकिन तुम्हें इसकी खबर नहीं होती है कि तुम्हारी नाक के नीचे क्या चल रहा है।”

“उसने हर तरह की चीजों के लिए कई वर्षों से और कई बार हमेशा मुझे ही दोषी ठहराया है… जैसे कि घर साफ न रखना, बच्चों को नहीं नहलाना और एक बार तो उसने मुझसे यह तक कहा था कि मेरे भोजन में ऐसी गंध आती है, जैसे मैंने महक के लिए उसमें बकरी की लेंडी का इस्तेमाल किया हो!”

“बाह, तुम इसका आधा हिस्सा भी नहीं जानते हो, लेकिन तुम मुझ पर विश्वास नहीं करते, है ना, अपनी पत्नी पर? हां, तुम मुस्कुरा सकते हो, लेकिन मैं तुमको बता दूं, मेरे लिए पिछले तीस वर्षों का यह अनुभव बहुत मज़ेदार नहीं रहा है। वैसे, उस ने क्या कहा?”

“कुछ नहीं, सच में, उसने केवल जांच की, तो उसका वही पुराना ढंग है। तुम जानती हो, थोड़े शैवाल पर पेशाब करना, एक पत्थर पर थूकना और फिर उसका तुम पर अपने बूढ़े दांतों वाले मुंह से एल्कोहल की फुहार छोडना। मुझे उसके बारे में सोच कर ही झुरझुरी आ जाती है। उसने कहा कि वह मुझसे कल बात करेगी, तब वह मुझे इसका परिणाम बताएगी।

बच्चे कहाँ हैं? क्या इस पारिवारिक चर्चा में भाग लेने के लिए उन्हें यहाँ नहीं होना चाहिए था?”

“मुझे ऐसा नहीं लगता, सच में नहीं। आखिर हम अभी कुछ भी नहीं जानते हैं, है ना? या तुम्हें कुछ समझ में आ रहा है?”

“नहीं, सच में नहीं। मैं ने सोचा कि मुझे उस चीनी लड़की से मालिश करानी पड़ेगी….हो सकता है कि अगर मैं उससे मेरे साथ थोड़ा नरमी बरतने को कहूँ तो शायद उससे कुछ फायदा हो। उसने यह हुनर उत्तरी थाईलैंड में सीखा था और वह थोड़ी कठोर हो सकती है, है ना….जैसा वे कहते हैं। तुम जानती हो, खास कर के मेरे अंदर की बीमारी, जैसी है। हालांकि शायद थोड़ी नर्म रगड़ाहट से उसमें लाभ होगा….तुम्हें क्या लगता है मेरी जान?”

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