“मेरा मतलब अपमान करना नहीं था, सर,” थोर ने कहा। “मैं तो बस शामिल होना चाहता था। दया कीजिए। मैंने जीवन भर इसका सपना देखा है। कृपा कीजिए। मुझे शामिल कर लीजिए।”
सिपाही ने धीरे से उसे देखा, उसके तेवर नर्म हो गए थे। थोड़े समय बाद उसने अपना सिर हिला दिया।
“तुम, एक जवान लड़के हो। तुम्हारे दिल में जोश है। लेकिन तुम अभी तैयार नहीं हो। जब तुम तैयार हो जाओ तो लौट आना।”
यह कहने के साथ ही दुसरे लड़कों की और देखे बगैर ही चला गया। वह तेजी से अपने घोड़े पर सवार हो गया।
हताश थोर ने उन्हें जाते देखा; वे जिस तेजी से आए थे उसी तेजी से जा चुके थे।
थोर ने फिर देखा कि सबसे आखिरी गाडी में उसके भाई सवार थे, वे उसकी ओर देख रहे थे और मजाक उड़ा रहे थे। उसकी आँखों के सामने उन्हें एक अच्छे जीवन के लिए ले जाया जा रहा था।
अंदर से थोर को मरने की इच्छा हुयी।
उसके चारों ओर उत्साह फीका होने लगा, गाँव वाले अपने घरों की ओर लौट गए।
“क्या तुम समझ पा रहे हो कि तुम कितने मूर्ख हो, मूर्ख लड़के?” थोर के पिता ने उसे कंधों से पकड़ कर ने कहा। “क्या तुम्हें एहसास भी है कि तुम अपने भाईयों के मौके को भी बर्बाद कर सकते थे?”
थोर ने गुस्से से अपने पिता के हाथ को धकेल दिया, और उसके पिता ने मुड़ कर उसके चेहरे पर एक थप्पड़ जड़ दिया।
थोर को यह बहुत चुभ गया था और अपने पिता को घूरने लगा। पहली बार उसके मन में ख़याल आया कि पलट कर अपने पिता पर वार कर दें। लेकिन उसने अपने आप को संभाल लिया।
“जाओ जा कर भेड़ ले आओ। अभी! और जब तुम लौट कर आओ तो मुझ से भोजन की उम्मीद मत करना। तुम्हें आज रात का भोजन नहीं मिलेगा, और तुम सोचो कि तुमने क्या किया है।”
“शायद मैं बिल्कुल भी वापस नहीं आऊँगा!” बाहर, अपने घर से दूर पहाड़ की ओर भागते हुए वो चिल्ला कर बोला।
“थोर!” उसके पिता चिल्लाए। सड़क पर खड़े कुछ गाँव वाले रुक कर देखने लगे।
थोर तेजी से चलने लगा, वो इस जगह से बहुत दूर जाना चाहता था, और फिर वो दौड़ने लगा। उसको यह ध्यान भी नहीं रहा कि उसकी आँखों में आंसू भर आए थे, अब तक के उसके सभी सपने जैसे कुचल दिए गए थे।
अध्याय दो
थोर गुस्से से उबल रहा था, वह घंटों पहाड़ी पर घूमता रहा, और फिर अंत में उसने एक पहाड़ी चुन लिया और उस पर अपने पैरों को हाथों से पकड़ कर क्षितिज के उस पार देखते हुए बैठ गया। उसने गाडी को आँखों से ओझल होते हुए देखा, उसके घंटों बाद भी धूल के गुबार को उसने उड़ते हुए देखा।
अब और कोई दौरा नहीं होगा। यदि वे कभी वापिस आयें भी तो, एक और मौके के लिए उसे बरसों इंतज़ार करना पड़ेगा — उसके भाग में तो बस इसी गाँव में रहना लिखा है। क्या पता उसके पिता अब एक और मौके की इजाजत दें भी या नहीं। अब तो घर में बस वो और उसके पिता रहेंगें, और यह बात तो पक्की है कि उसके पिता अब अपना पूरा गुस्सा उस पर ही निकाला करेंगें। सालों गुजर जायेंगे और वो बस अपने पिता का सेवक बन कर रह जाएगा, अपने पिता की तरह ही उसे भी यह बेमतलब की ज़िन्दगी यहीं गुज़ारनी पड़ेगी — जबकि उसके भाई गौरव और यश की प्राप्ति करेंगें। उसकी नसों में जैसे खून खौल रहा था। उसका मकसद ऐसी ज़िन्दगी जीने का कतई नही था। वह यह जानता था।
थोर अपने दिमाग पर जोर दे रहा था कि वो कुछ भी ऐसा करे जिससे कि वो यह सब बदल सके। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं था। उसके किस्मत में तो बस ये ही पत्ते निकले थे।
घंटों बैठने के बाद वह हताश हो कर उठा और जाने पहचाने रास्ते से पहाड़ी से ऊपर और ऊपर की ओर चलने लगा। जैसा निश्चित था, वो पहाड़ी के ऊपर झुण्ड की ओर चला गया। वो ऊपर की ओर चढ़ रहा था और सूरज भी अपने जोरों पर था। ऐसे ही घुमते हुए उसने बड़े आराम से, बेखबर हो कर कमर पर लगी गुलेल को हटाने लगा, सालों के उपयोग से चमड़े की पकड़ काफी अच्छी हो गई थी। कूल्हे पर बंधे बोरी में से वह चिकने पत्थरों को सहलाने लगा, हर एक पत्थर दुसरे से नर्म था, ये पत्थर उसने सबसे अच्छे नदी नालों से इकट्ठे किए थे। वह कभी चिड़ियों पर तो कभी चूहों पर निशाना साधता। उसकी यह आदत उसमें बरसों से अंतर्निहित थी। शुरू में तो उसके सारे लक्ष्य चूक गए; लेकिन फिर बाद में एक चलते हुए लक्ष्य पर उसका निशाना लग गया। और तब से उसका हर एक निशाना सही था। अब तो पत्थर मारना उसकी आदत बन गयी थी — और इससे उसे अपने गुस्से को कम करने में मदद मिली। उसके भाई वृक्ष के तने को तलवार से काट सकते थे —लेकिन वे कभी भी उड़ते पक्षी पर निशाना नहीं साध सकते थे।
थोर ने गुलेल पर एक पत्थर रखा और उसे आंख मूंदकर इतने जोरों से छोड़ा मानो अपने पिता पर निशाना लगा रहा हो। उसका निशाना दूर स्थित एक पेड़ पर जा लगा, और उसकी एक शाखा नीचे गिर गई। जब उसे इस बात का एहसास हुआ कि वो सच में चलते जानवरों पर निशाना लगा सकता था तो उसने उन पर निशाना लगाना बंद कर दिया; अब उसका लक्ष्य पेड़ों की शाखाएं थी। जब तक निस्संदेह कोई लोमड़ी उसके झुण्ड के पीछे नहीं आती। समय के साथ-साथ वे भी उसके निशाने पर आने से बचना सीख गए थे, परिणाम स्वरुप थोर की भेड़ें अब पूरे गांव में सबसे सुरक्षित थी।
थोर अपने भाईयों के बारे में सोचने लगा, यह कि वो अभी कहाँ हो सकते थे और वो गुस्से से उबलने लगा। एक दिन की सवारी के बाद वे राजा के दरबार में पहुँच जायेंगें। वो यह सब तस्वीर देख पा रहा था। वह देख पा रहा था, बड़ी धूम-धाम से उनका स्वागत किया जा रहा है, बेहतरीन कपड़े पहने लोग उन्हें देखने के लिए आए थे। योद्धा उनका स्वागत कर रहे थे। सिल्वर के सदस्य भी। उन्हें अन्दर ले जाया जायेगा, उन्हें क्षेत्र के बैरक में रहने की जगह दी जायेगी, राजा के मैदान में बेहतरीन हथियारों सहित उन्हें प्रशिक्षण के लिए ले जाया जाएगा। प्रत्येक को एक प्रसिद्ध नाइट की पदवी से सम्मानित किया जाएगा। एक दिन वे खुद अनुचर बन जायेंगे, उनके अपने घोड़े होंगे, अपने हथियार होंगे और उनके भी अपने अनुचर होंगें। वे सभी समारोहों में हिस्सा लेंगें और राजा की मेज पर भोजन करेंगे। यह एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला जीवन था। और यह उसके हाथ से फिसल गया था।
थोर ने शारीरिक रूप से अपने आपको बीमार महसूस किया, और अपने मन से सब कुछ निकालने का प्रयास किया। लेकिन उसके भीतर एक उसका अपना एक हिस्सा था जो उस पर चिल्ला रहा था। उसका वो हिस्सा उसे कह रहा था कि वो उम्मीद ना छोड़े, उसका भाग्य इससे भी कहीं बेहतर है। उसे नहीं मालूम था कि वो क्या है, लेकिन वह जानता था वो यहाँ नहीं है। उसे लग रहा था वो बिलकुल अलग है। शायद और भी ख़ास। यहाँ तक कि कोई भी उसे समझ ही नहीं पाया था। और सब ने उसे कम आंका है।
थोर उच्चतम टीले पर पहुँच गया और उसने अपने झुंड को देखा। वे सभी झुण्ड में थे, उन्हें अच्छा प्रशिक्षण मिला था, जो कुछ भी घास उन्हें मिला वो बड़े संतुष्ट हो कर उसे खा रहे थे। उसने उनकी पीठ पर लगे लाल निशान के आधार पर उनकी गिनती की। गिनती खत्म होने पर उसे एक धक्का लगा। उनमें एक भेड़ कम थी।
उसने फिर से गिना, और एक बार फिर। उसे विश्वास नहीं हो रहा था: एक भेड़ गायब थी।
थोर ने इससे पहले कभी कोई भेड़ नहीं खोयी थी, और उसके पिता अब उसे कभी माफ़ नहीं करेंगें। इससे भी बुरा उसे ये लग रहा था कि एक भेड जंगल में अकेली और कमजोर थी। उसे यह बहुत बुरा लग रहा था कि एक निर्दोष को सहना पड़ रहा है।
थोर टीले के ऊपर चढ़ कर चारों ओर तब तक देखता रहा जब तक उसे वो अकेला, लाल निशान वाली भेड़ दिख ना जाए। वो भेड़ झुण्ड में सबसे बिगडैल थी। जब उसे एहसास हुआ कि वो केवल भागा ही नहीं था बल्कि पश्चिम की ओर गहरे जंगल की तरफ जा रहा था तो उसका दिल बैठ गया।
थोर ने थूक निगला। गहरे जंगल में जाने की इजाजत नहीं थी – भेड़ ही नहीं बल्कि इंसानों को भी। यह गाँव की सीमा से बाहर था, जब से उसने चलना सीखा है तब से थोर जानता था वहाँ जाना मना है। वो वहाँ कभी नहीं गया था। ने कहानियों में कहा गया है कि वहाँ जाने का मतलब है निश्चित मौत, यह जंगल अगोचर और शातिर जानवरों से भरा हुआ था।
थोर ऐसे ही विचार करते हुए काले आसमान की ओर देखने लगा। वो अपने भेड़ को यूं ही नहीं जाने दे सकता था। वो सोचने लगा यदि थोड़ी और तेज चला जाए तो हो सकता है उसे समय पर वापिस ला सकूं।
एक आखिरी बार उसने मुड़ कर देखा और फिर पश्चिम की ओर गहरे जंगल की तरफ़ भागने लगा, ऊपर घने बादल छाये हुए थे। उसे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, ऐसा लग रहा था मानो उसके अपने पैर उसे कहीं लिए जा रहे थे। उसे एहसास हुआ वह चाहे तो भी अब वापिस नहीं जा सकता था।
यह सब एक दुःस्वप्न जैसा लग रहा था।
*
थोर बिना रुके कई पहाड़ियों को पार करते हुए घने जंगलों में पहुँच गया, जहां जंगल शुरू होता था वहीँ जाकर निशान ख़त्म हो गए थे, और वह अब भागता हुआ एक गुमनाम क्षेत्र में पहुँच गया था, पत्तियाँ उसके पैरो तले चर-मरा रही थी।
जैसे ही उसने जंगल में कदम रखा, उसे अँधेरे ने जैसे घेर लिया, उसके ऊपर इतने ऊंचे पेड़ थे जो रौशनी को रोक रहे थे। यहाँ ठण्ड काफी थी, और जैसे ही उसने सीमा पार की उसने भी सिहरन महसूस की। यह सिहरन ठण्ड से या अँधेरा से नहीं थी यह तो कुछ और था। कुछ ऐसा जिसे वो नाम नहीं दे पा रहा था। कुछ ऐसा मानो जैसे कोई उस पर नज़र रख रहा हो।
थोर ने लहराते और हवा में चरमराती हुई प्राचीन शाखाओं को देखा। वह मुश्किल से पचास कदम चला ही था कि उसे जानवरों की अजीब सी आवाज सुनाई देने लगा। वह पीछे मुड़ कर उस ओर देखने लगा जहां से वो अन्दर आया था; उसको जैसे पहले से ही एहसास हो गया था कि अब वापिस जाने का कोई रास्ता नहीं था। वह झिझक रहा था।
घना जंगल तो हमेशा से शहर की परिधि में था और थोर की चेतना की परिधि पर भी, बहुत गहरा सा और काफी रहस्यमयी भी। कभी भी किसी भेड़ के गहरे जंगल में जाने पर किसी भी चरवाहे की इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि वो उसकी खोज में निकल पड़े। यहां तक कि उनके पिता भी। इस जगह से जुड़ी ने कहानियां भी गहरी और जबर्दस्त थी।
लेकिन आज कुछ अलग थी जिसकी वजह से थोर को अब किसी बात की परवाह नहीं थी, उसे अब कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था। उसका एक मन तो कह रहा था की अपने घर से जितनी दूर हो सके निकल जाए, चाहे जिन्दगी कहीं भी ले जाए।
वह काफी आगे तक निकल चुका था, अब उसे समझ नहीं आ रहा था किस और जाए, ये सोच कर वह रुक गया। उसे कुछ निशान दिखे, जिस ओर उसकी भेड़ गई होगी वहां पर शाखाएं झुकी हुयी थी और वह उस ओर मुड़ गया। कुछ देर बाद वह फिर मुड़ा।
एक घंटा और बीत गया, अब वह भटक गया था। वह याद करने का प्रयास करने लगा कि वह किस ओर से आया था लेकिन उसे तो कुछ भी याद नहीं था। उसके पेट में बल पड़ रहे थे, उसे लगने लगा था बाहर निकलने का रास्ता बस सामने वाला है और फिर वह बढ़ता चला गया।
कुछ दूरी पर थोर को सूर्य के प्रकाश की एक लड़ी दिखाई दी और वो उस और बढ़ गया। थोड़ी सी खुली और साफ़ जगह पर उसने अपने आपको स्थिर कर लिया और जो उसने देखा उसे अपने आँखों पर विश्वास नहीं हुआ।
वहाँ थोड़ी दूरी पर एक लंबे, नीले साटन का लिबास पहने एक आदमी थोर की ओर पीठ किये खड़ा था। उसे एहसास हो रहा था कि वो सिर्फ एक आदमी नहीं है। वह तो कुछ और ही लग रहा था। शायद कोई पुरोहित था। वह काफी लम्बा था और बिलकुल सीधे खड़ा था, सर पर टोप लिए एकदम चुपचाप, ऐसा लग रहा था मानो उसे पूरी दुनिया में किसी का भी फ़िक्र नहीं था।
थोर को पता नहीं था कि क्या करे। उसने पुरोहितों के बारे में सुन तो रखा था लेकिन कभी सामना नहीं हुआ था। उसके पोशाक से और सोने से सज्जित उसकी शख्सियत यही बतला रहे थे वो कोई साधारण पुरोहित नहीं था: यह सब तो शाही था। थोर को समझ नहीं आया। एक शाही पुरोहित भला यहाँ क्या कर रहा था?
एक अनंत काल जैसा महसूस करने के बाद, पुरोहित धीरे से मुड़े और उसकी ओर मुख किया, और जैसे वे मुड़े थोर ने उनका चेहरा पहचान लिया। उसकी तो मानो जैसे सांसें थम सी गई थी। वह राजा का निजी पुरोहित था: राज्य में सबसे प्रसिद्ध चेहरों में से एक। आर्गन, सदियों से पश्चिमी साम्राज्य के राजाओं का सलाहकार। लेकिन वो राजमहल से दूर यहाँ घने जंगलों में क्या कर रहे थे, यह एक रहस्य था। थोर को लग रहा था कि कहीं यह सब कल्पना तो नहीं।
“आपकी आँखें आप को धोखा नहीं देती है,” आर्गन ने सीधे थोर को घूरते हुए ने कहा।
उसकी आवाज प्राचीन और गहरी थी, जैसे मानो वृक्ष ही कुछ बोल रहे थे। उसकी बड़ी, पारदर्शी आँखें उसे जैसे अन्दर तक चीर रही थी। थोर को एक गहरी ऊर्जा की अनुभूति हुई, मानो जैसे वो सूरज के सामने खड़ा था।
थोर ने तुरंत अपने घुटने टेक दिए और अपने सिर को झुका दिया।
“मेरे स्वामी,” उसने कहा। “आपको परेशान करने के लिए माफी चाहता हूँ।”
राजा के सलाहकार का अनादर करने का परिणाम कारावास या मौत ही होता है। यह तथ्य उसके दिमाग में उसके जन्म से ही बैठ गया था।
“उठो बच्चे,” आर्गन ने कहा। “यदि मैं चाहता कि तुम मेरे सम्मुख झुको तो मैं ऐसा कह देता।”
थोर धीरे से उठा और उनकी ओर देखने लगा। आर्गन चल कर उसके करीब आये। वह रुक गए थे और थोर को घूरने लगे, थोर अस्वस्थ महसूस करने लगा था।
“तुम्हारी आँखें तुम्हारी माँ जैसी हैं,” आर्गन ने कहा।
थोर भौचक्का रह गया। वह कभी अपनी माँ से नहीं मिला था, और वो अपने पिता के अलावा किसी ओर से कभी नहीं मिला जो उसकी माँ को जानता था। उसे कहा गया था कि बच्चा जनते समय उसकी माँ चल बसी थी, यह कुछ ऐसा था जिसके लिए वो सदैव अपने आपको दोषी समझता था। उसे हमेशा यह शक रहता था कि शायद इसीलिए उसका पूरा परिवार उससे नफरत करता था।
“मुझे लगता है कि आप मुझे कोई ओर समझ रहे हैं,” थोर ने कहा। “मेरी माँ नहीं हैं।”
“अच्छा तो नहीं हैं?” आर्गन ने मुस्कुराते हुए पूछा। “तो तुम्हें किसी आदमी ने अकेले ही जन्म दिया है क्या?”
“सर, मेरे कहने का मतलब था की मेरी माँ का देहांत मुझे जन्म देते हुए हुआ था। मुझे लगता है आप मुझे कोई ओर समझ रहे हैं।”
“तुम मैकलियोड़ कबीले से, थोग्रिन हो। चार भाईओं में सबसे छोटे, जिसका चयन नहीं हुआ था।”
थोर की आँखें फटी रह गयी। उसको समझ नहीं आ रहा था, इससे क्या आशय निकाला जाए। यह उसकी समझ से परे था, कोई आर्गन जैसे ओहदे वाला जानता था कि वो कौन है। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि अपने गाँव के बाहर भी उसे कोई जानता है।
“आप.... यह कैसे जानते हैं?”
आर्गन जवाब दिए बिना ही मुस्कुरा दिया।
अब अचानक थोर की उत्सुकता बढ़ गयी थी।
“कैसे....” थोर ने हिचकिचाते हुए ने कहा, “...आप मेरी माँ को कैसे जानते हैं? क्या आप उनसे मिले हैं? वो कौन थी?”
आर्गन मुड़े और वहां से चल दिए।
“प्रश्नों को किसी ओर समय के लिए छोड़ दो” उन्होंने कहा।
थोर ने हैरानी से उन्हें जाते हुए देखा। यह एक चकरा देने वाला और रहस्यमयी मुलाक़ात थी, और यह सब बहुत तेज़ी से हो रहा था। उसने निश्चय किया कि वो उन्हें यूं ही नहीं जाने देगा; वह जल्दबाजी में उनके पीछे चल पड़ा।
“आप यहाँ क्या कर रहे हैं?” बात को आगे बढाते हुए थोर ने पुछा। आर्गन अपनी हाथी दांत से बनी छड़ी का उपयोग करते हुए भ्रामक रूप से तेज चलने लगे। “आप मेरा इंतज़ार तो नहीं कर रहे थे, क्यों हैं न?”
“तो फिर किसका?” आर्गन ने पुछा।
उनके पीछे–पीछे थोर तेज़ी से जंगल के अन्दर की ओर चला गया। “लेकिन मेरा ही क्यों?” आपको कैसे पता, मैं यहाँ आऊँगा? आपको आखिर क्या चाहिए?”
“इतने सारे सवाल, आर्गन ने कहा। “तुम्हें पहले सुन लेना चाहिए।”
थोर चुप रहने का प्रयत्न करते हुए घने जंगल में उनके पीछे चल दिया।
“तुम अपने भेड़ को ढूँढने आये हो,” आर्गन ने कहा। “यह एक अच्छा प्रयास है, लेकिन तुम अपना वक़्त बर्बाद कर रहे हो। वो जिन्दा नहीं होगी।”